Thursday 7 May 2020

दिल के टुकड़े दूर फँसे / कवि - प्रशान्त दास

कोरोना ग़ज़ल 

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बिन   बेचैनी   चैन  क्या
दुःस्वप्न बिन नैन क्या !

दिल के टुकड़े दूर फँसे
कारें क्या, अब ट्रेन क्या !

भूखे हैं, वो फिर  भी चुप
बंदूकें क्या,और केन क्या !

इंसानों से प्रेम  न  हो तो
क्या हिंदू, और जैन क्या !

सबको मारा बारी-बारी
दास, पीटर, हुसैन क्या !

गहरी जेबें, पर दिल छोटे
लेन  क्या,  तब  देन  क्या !

इंतज़ार  में  बीत  रहे  हैं
सांझ-भोर, दिन-रैन क्या !
........
कवि - प्रशान्त दास 
कवि का ईमेल आईडी - prashant.pkd@gmail.com
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Wednesday 6 May 2020

कोरोना को भगाना है / कवयित्री - शिखा सुप्रिया

गीत 

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 कैसी है ये महामारी 
मौत के मुंह में दुनिया सारी
बहुत हो चुका मौत का तांडव 
अब तो इसे हराना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

अफवाहों से नहीं घबराना 
सुरक्षा क्रांति के दीये जलाना 
संघर्ष के मृदंग को बजाना 
 भारत को मुसकाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

शिकवों की जो थी बरसातें 
अपनों को वक़्त न देने की बातें 
आज यह अवसर मिला तो अब
हमको नहीं गंवाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

छूट गई जो व्यवहार-संस्कृति 
फिर से उसे अपनाना है 
हाथ जोड़कर अभिनन्दन करना 
इसे व्यवहार में लाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

लॉक डाउन का करें पालन 
घरों के अन्दर समाना है 
सरकार के अनुदेशों को सुनकर 
मानना और मनवाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है.
.........

कवयित्री - शिखा सुप्रिया 
कवयत्री का ईमेल - shikhashankardas@gmail.com
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Friday 1 May 2020

कोरोना महामारी / कवयित्री - विनीता मल्लिक

कविता 

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नहीं देखता वह धर्म
नहीं पूछता जाति
न रूके मेरी स्वीकृति को
न दे  हिदायत।

बिनु पदचाप का वह फैल रहा
है बना सम  का रथी
मनुजता का लाभ उठा
मनुज को ही बना सारथी।

अति सूक्ष्म होकर भी
विकराल असुर है वह
वसुधा कुटुम्ब को
काल गाल में धकेलता वह।

समाजिकता का शत्रु  बन
निर्दोष प्राण हर रहा
अपने से अपनों को
दूर किये जा रहा।

छीन रहा उनमुक्तता और
विश्वास जो मिलता नेह से
शीतलता के स्थान पर
भयावहता झलके मनुष्य  के देह से।

गाइड लाइन के अनुपालन  से
जीतेंगे हम यह झगड़ा
रख स्वयं  को स्वच्छ
जबाव देंगे हम तगडा।
......
कवयित्री - बिनीता मल्लिक
कवयित्री का ईमेल - binitamallik143@gmail.com
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