Thursday 7 May 2020

दिल के टुकड़े दूर फँसे / कवि - प्रशान्त दास

कोरोना ग़ज़ल 

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बिन   बेचैनी   चैन  क्या
दुःस्वप्न बिन नैन क्या !

दिल के टुकड़े दूर फँसे
कारें क्या, अब ट्रेन क्या !

भूखे हैं, वो फिर  भी चुप
बंदूकें क्या,और केन क्या !

इंसानों से प्रेम  न  हो तो
क्या हिंदू, और जैन क्या !

सबको मारा बारी-बारी
दास, पीटर, हुसैन क्या !

गहरी जेबें, पर दिल छोटे
लेन  क्या,  तब  देन  क्या !

इंतज़ार  में  बीत  रहे  हैं
सांझ-भोर, दिन-रैन क्या !
........
कवि - प्रशान्त दास 
कवि का ईमेल आईडी - prashant.pkd@gmail.com
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