कविता
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नहीं देखता वह धर्म
नहीं पूछता जाति
न रूके मेरी स्वीकृति को
न दे हिदायत।
बिनु पदचाप का वह फैल रहा
है बना सम का रथी
मनुजता का लाभ उठा
मनुज को ही बना सारथी।
अति सूक्ष्म होकर भी
विकराल असुर है वह
वसुधा कुटुम्ब को
काल गाल में धकेलता वह।
समाजिकता का शत्रु बन
निर्दोष प्राण हर रहा
अपने से अपनों को
दूर किये जा रहा।
छीन रहा उनमुक्तता और
विश्वास जो मिलता नेह से
शीतलता के स्थान पर
भयावहता झलके मनुष्य के देह से।
गाइड लाइन के अनुपालन से
जीतेंगे हम यह झगड़ा
रख स्वयं को स्वच्छ
जबाव देंगे हम तगडा।
......
कवयित्री - बिनीता मल्लिक
कवयित्री का ईमेल - binitamallik143@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
सही चित्रण 👏👏
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