Tuesday 28 April 2020

जान की खातिर सब कुछ सहना अच्छा लगता है / डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव

गीत 

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चुप - चुप यूँ घर में ही रहना  अच्छा लगता है
जान की खातिर सब कुछ सहना अच्छा लगता है।

हैरत बस इस बात की पल- पल मुझे सताती है
 छींक जरा सी आ गई तो 'कोरोना' लगता है।

कितनी खुशियाँ ज़ल्वे थे जब बाहर जाते थे
 आज डरा दिल कुछ ऐसे, सब सपना लगता है।

जी ना लगता, कैसे कह दूँ, सब तो अपने हैं
 अपनों के संग वक्त बिताना अच्छा लगता है!

 पास नहीं आओ बस नज़रों से ही बात करो तुम जी,
 कुछ मुस्काके नज़रें झुकाना अच्छा लगता है।

कितनी कातिल, कितनी जालिम छुप- छुप घात करे
 घर में छुप कर इसे भगाना अच्छा लगता है।

ऐ 'अनु' डर भरे बेबस पल, शीघ्र ही बीतेंगे
 डर को भी हँस- हँस कर जीना अच्छा लगता है!
.........
कवयित्री - डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
पता - पटना - बिहार
कवयित्री का ईमेल - annpurnashrivastava1@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

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