Sunday 12 April 2020

प्रलय का अंत हमारे हाथों / कवि- डॉ. प्रशान्त दास

कविता 





विस्मित, चिंतित, आतंकित
हमारे अंतरतम का गान ।

एकाकी गलियां और जनपथ
अंदर से ताले लगे मकान।

हुआ क्या ऐसा इस धरती पर
बिन अनुमान, बिन संज्ञान ?

सामाजिकता कंप्यूटर तक
व्हाट्स-ऐप्प तक अनुसंधान ।

राजनीति की ज्वाला भड़की
जलता घर पर है इंसान ।

धर्म- पंथ के ईंधन पर अब 
पके न नफरत के पकवान ।

दिहाड़ी मजदूरों को भी
आत्मीयता से मिले सामान ।

भारतीयता रहे यह स्मित
बनें रहे हम सब इंसान ।

प्रलय का अंत हमारे हाथों
होगा ही निश्चित श्रीमान ।

एकमात्र संकल्प है साधन
थोड़ी भक्ति, थोड़ा ज्ञान ।
......


कवि - डॉप्रशान्त दास  
पता -लौजान (स्विट्ज़रलैंड)
कवि का ईमेल - prashant.pkd@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

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