Tuesday 14 April 2020

मनु कहिन (23) - -लाॅकडाउन और हम

सामयिक लेख

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वैश्विक लाॅक डाउन से हम सभी गुजर रहे हैं। लगभग पूरा विश्व हलकान है इस कोरोना वायरस से। पूरे विश्व को इसने 'बैकफुट' पर ला दिया है। कभी=कभी तो ऐसा लगता है मानों हम सभी भाग्य भरोसे चल रहे हैं। बस इसी विश्वास के सहारे कि एक अंधेरे सुरंग में भी रोशनी की एक किरण होती है। यही संबल है हमारे आगे बढ़ने का। अरे अगर शत्रु जाना पहचाना हो तो आप लड़ सकते हैं। लड़ कर जीत और हार सकते हैं। पर, अदृश्य शत्रु का क्या कहना! सच मे, सामाजिक दूरी ही एकमात्र विकल्प है। हमे समझने की जरूरत है। सिर्फ समझने की ही नही बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी जागरुक करने की जरूरत है। यह कोई कानून व्यवस्था की समस्या नही है कि आप देश के प्रचलित कानून के तहत हल कर लेंगे। कानून व्यक्तिगत अपराधियों से निपटने के लिए है न कि पूरे समाज से। आप सभी को जागरूक कर ही इस समस्या से निजात पा सकते हैं। 

जब भी कोई इस तरह की समस्या आती है जो अपना असर पूरे देश पर दिखाती है तो इसके विभिन्न आयाम होते हैं। सबसे पहले तो यह पता चलता है कि आप कितने व्यवस्थित और अव्यवस्थित हैं। आज हमारे स्वास्थ्य कर्मी, स्थानीय प्रशासन के लोग, पुलिस वाले सभी एकजुट होकर एक-दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं। दिन-रात एक कर दिया है इन लोगों ने। ये लोग भी खतरें मे हैं पर, इन्होंने मुंह नही मोड़ा है। सैल्यूट है इनके लिए। पर, आप बताएं क्या कभी हमारे देश के वे लोग जो लोग पूरे देश के लिए नीतियां बनाते हैं, आने वाले दिनों के लिए एक विज़न रखतें हैं ? कभी उन्होंने ख्यालों मे भी इस संदर्भ मे सोचा ? हमलोग जब स्कूलों मे पढ़ा करते थे उस वक्त हर स्कूल मे एनसीसी, नेवी और स्काउट्स & गाइड की तरफ से छात्रों को प्रेरित किया जाता है इनमें शामिल होने के लिए। लगभग हर छात्र अपनी स्वेच्छा से इनमें शामिल होता था। मेरा अपना मानना है ये आपातकाल के लिए अनुशासित वोलंटियर्स की एक फौज तैयार करते थे जो इसी तरह की किसी भी राष्ट्रीय आपदा के समय अनुशासित तरीके से अपना योगदान दे सकें। अगर राष्ट्रीय आपदा न भी हो तो कम से कम ये लोग एक अनुशासित नागरिक का निर्माण तो करते ही थे। आज स्थिति क्या है, मैं नही जानता हूं। शायद, ये संस्थाएं आज भी चल रही हों पर, उसका स्वरूप, उसका मकसद, जो होना चाहिए  धरातल पर नही दिख रहा है। धरातल पर उसे दिखना चाहिए। कोरोना जैसी राष्ट्रीय आपदा के समय ये अनुशासित वोलंटियर्स लोगों के बीच रहकर जिस प्रभावी ढंग से काम कर लेंगे और कोई नही कर सकता।

एक बात और जो मैं कहना चाहूंगा। हम सभी जानते हैं, देखा है हमने, अनुभव किया है हमने। किसी भी स्तर का चुनाव हो। खासकर वो चुनाव जो दलीय आधार पर लड़ा जा रहा हो, उसमे हर दल मे स्वयंसेवकों / कार्यकर्ताओं की एक फौज नज़र आती है।बूथ स्तर पर भी लगभग हर दल के कार्यकर्ताओं की भीड़ होती है। कहां हैं वो लोग ? आज उनकी जरूरत है। आएं और बूथ स्तर पर काम करें। आज वाकई समाज को और देश को उनकी जरूरत है। सरकारें हर काम नही कर सकती। उन्हें भी जरूरत है वोलंटियर्स की, स्वयंसेवकों की, कार्यकर्ताओं की। 

कहां गए स्वयं सेवी संस्थाओं के लोग? कहां गए वो लोग जिनकी संस्थाओं को अपार धनराशि चंदे के रूप मे देश और विदेश से प्राप्त होती थी। आखिरकार,इस राशि का क्या औचित्य है? समय हैं! उन्हें आगे आने की जरूरत है। अपनी अपनी क्षमता के अनुसार काम करने की जरूरत है। लाॅकडाउन की अवधि मे देश को, समाज को, मानवता को आपकी जरूरत है। लाॅकडाउन की अवधि खत्म होने के बाद आपका काम खत्म नही होगा ! उसकी प्रकृति अलग हो सकती है। हमें बाद मे एकजुट होकर काम करना होगा। चुनौतियाँ अभी कम नही हुए हैं। 

आप देखें! कितने सचेत, कितने जागरूक हैं हम ! हम सामाजिक दूरी बनाएं रखें! यह बात समझने और समझाने की है। एक दूसरे को बचाने एवं जागरूक करने की है। क्या हम कर पा रहे हैं? शायद नहीं। यहां पर भूमिका आती है स्वयंसेवकों की, कार्यकर्ताओं की, स्वंयसेवी संस्थाओं की, एनसीसी, नेवी और स्काउट्स& गाइड  के वोलंटियर्स का। इसके विपरीत , हमे देखने को मिल रहा है अपने उपर ड्रोन से निगरानी होते हुए ताकि हम बाहर न निकलें। कोरोना वायरस से निपटने के लिए सामाजिक दूरी का पालन करें। सरकार भी क्या करे। हर व्यक्ति की निगरानी भी संभव नही है।

अगर हमे इस राष्ट्रीय आपदा से सुरक्षित निकलना है, अपने देश को बचाना है, मानवता को बचाना है तो तमाम दायरे से परे हमे एकजुट होकर एक-दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर काम करने की जरूरत है। किस ने क्या किया ? अच्छा किया या बुरा किया? आज इस बात की समीक्षा करने का वक्त नही है। सुरक्षित रहेंगे तो समीक्षा भी कर लेंगे, चीजों को व्यवस्थित भी कर लेंगे।
जय हिन्द !
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लेखक - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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