Wednesday 1 April 2020

मनु कहिन(22) - जिंदगी ना मिलेगी दोबारा!

ललित निबंध

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अब ऐसा मैंने लिख दिया है तो  ज्यादा नकारात्मक सोचने की जरूरत नही है। वाकई मे, मैंने ऐसा कुछ नही लिखा है जिसपर, हाय तौबा मचाने की जरूरत है! जिंदगी हमेशा से ही बड़ी ही अनमोल रही है। भगवान की सबसे खूबसूरत देन मे से एक है। ऐसा कहा जाता है कि चौरासी लाख योनियों मे भटकने के बाद पुनः मानव जीवन की प्राप्ति होती है। मानव जीवन  **** बड़ी मुश्किल से प्राप्त होता है। फिर क्यूं इसे यूं ही छोड़ दिया जाए। क्यों इसे आधे अधूरे मे ही छोड़ दिया जाए। क्यूं नही जिंदगी को भरपूर जिया जाए।

वर्तमान मे हम सभी देख रहे हैं। अनुभव कर रहे हैं। मैं बात कर रहा हूं *को रोना* संकट की। पुरा विश्व एक अभूतपूर्व संकट के दौर से गुजर रहा है। 

*कोरोना* *वायरस*  रूपी संकट के बादल सबके ऊपर मंडरा रहे हैं। कुछ कम या ज्यादा सभी इसके चपेट मे हैं। पुरी की पुरी मानव जाति संकट मे है। यह वक्त ज्यादा सोचने का नही है। अपने आप को, अपने करीबियों को , अपने परिवार को बचाने का वक्त है। आप कैसे बच और अपनों को बचा सकते हैं। बस इतना ही सोचना है। सामाजिक दूरी बनाएं, कम से कम लोगों से मिले जुलें ! घरों मे ही रहें। सुरक्षित रहें। इसी तरह से ही आप इस *को रोना* रुपी भयानक आपदा से खुद को और अपने करीबियों को बचा सकते हैं। 

आज देश आपसे कुछ नही बस इस समस्या से निपटने के लिए महज़ २१ दिन मांग रहा है। क्या अपने देश के लिए आप २१ दिन नही दे सकते हैं ? अरे, २१ दिन क्या पुरी की पुरी जिंदगी न्योछावर है देश हित मे ! *राष्ट्रवाद* की पुकार है - सिर्फ और सिर्फ २१ दिन।

जिस प्रकार हर सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार "जिंदगी ना मिलेगी दोबारा" इसके भी दो पहलू हैं। इस २१ दिनों के लाॅक डाऊन को इंज्वॉय करें। बाध्यता की वजह से ही सही पुरी दुनिया छुट्टियां मना रही है ( मुझे क्षमा करें इस वक्तव्य के लिए) । सुरक्षा के दृष्टिकोण से घर के अंदर एक तरह से नजरबंद है हम सभी। यह मौका फिर नही मिलने वाला। भगवान न करे यह नौबत फिर से आए। पर, अगर नौबत आ ही गई है तो फिर परेशान न हों। छोटा सा कालै बादल का टुकड़ा है। हवा इसे जल्द ही बहा कर ले जाएगी। आपके देखते ही देखते यह मंज़र भी टल जाएगा ।

इसे आप अघोषित अवकाश कहें या फिर नजरबंदी*** एक ही रास्ता है। हंस कर परिवार के साथ इंज्वॉय करें। घर बैठकर पछिया हवा इंज्वॉय करें। इसका भी आनंद उठाएं। प्रदूषण मुक्त --- हां कतिपय कारणों से प्रदूषण मुक्त आवो-हवा इंज्वॉय करें। एक अभूतपूर्व शांत माहौल को इंज्वॉय करें। बच्चों के साथ, परिवार के अन्य सदस्यों के साथ गुणवत्तापूर्ण जीवन जिएं। अभी तक जिन्हें शिकायत थी एक दूसरे से *** समय की वजह से*** शायद दूर हो सकेगी। सोशल मीडिया पर हम देख भी रहे हैं। भिन्न-भिन्न तरीके से लोग इस वक्त को टालने मे लगे हैं। कोई किचन मे है तो कोई बर्तन और कपड़े साफ करता हुआ दिखाई दे रहा है।  पेशानी पर बल न दें। वक्त है ,  थोड़ा ही तो बुरा है ,टल ही जाएगा। यह किसी के लिए और किसी के चाहने से रूका है भला। बस, इस वक्त को अपने सर के उपर चढ़ने न दें। थोड़ा झटकते हुए इंज्वॉय करें।यही समय की मांग है।
हां, एक और positive पहलू जो इस संकट की घडी में दिखाई  दे रहा है वो यह कि   आस पड़ोस के स्थानीय दुकानदारों ने जरूरी सामानों की आपूर्ति बनाई रखने मे कोई कोर कसर नही छोड़ी।  सरकार ने भी यथासंभव आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति कुछ नियंत्रण के साथ निर्बाध जारी रखा।

 जो सामाजिक संबंध हमारी ताकत थी , इस सामाजिक दूरी के वक्त फिर से मजबूती के साथ हमारे साथ खड़ी दिखाई दी।

हर बड़ी घटना के गुजर जाने के बाद समीक्षाओं का एक दौर शुरू होता है। इस *को रोना* संकट की भी समीक्षा होगी। कहां से और कैसे इसकी शुरुआत हुई। कैसे इसे विस्तार मिला। कहां और किसकी गलती से *को रोना* *वायरस* एक विश्वव्यापी संकट के रूप मे उभरा ? इसकी सभी पहलुओं की समीक्षा होगी।  किसी न किसी पर , ठीकरा फोड़ा जाएगा। कोई न कोई विलेन बनकर उभरेगा। किसी न किसी की तो विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगेगा। पर, यह तो आने वाले वक्त की बात है।  फिलहाल तो वक्त है लाॅक डाऊन के नियमों का शिद्दत से पालन करने का। अपने आप को बचाने का। अपने आसपास और परिवार के अन्य सदस्यों को बचाने का। साथ ही साथ इस विश्वव्यापी संकट से जूझ रहे अपने देश को बचाने का।
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लेखक का नाम - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल- itomanish@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ब्लॉग का ईमेल - editorbejodindia@g

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