Wednesday 8 April 2020

लोंकडाउन / रचनाकार - वंदना श्रीवास्तव

लघुकथा 


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आज लोंकडाउन का छठा दिन है। कन्सट्रक्शन साइट पर ही बनी झोपड़ी के कोने में रमिया आतंकित, आशंकित अपनी 6 वर्ष की बेटी रानी और 2वर्ष के बेटे के साथ अपने भाग्य पर आंसू बहा रही थी। पति पिछले वर्ष ही इसी साइट पर एक दुर्घटना में मारा गया था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। शुरू के 3-4 दिन जैसे तैसे पास रखे पैसों से बच्चों की भूख को सम्भाल लिया था लेकिन अब स्थिति हाथ से बाहर निकल गई थी। साइट पर रहने वाले अधिकतर लोग पैदल ही अपने गृह नगर की ओर चल पड़े थे। क्या करते...एक तरफ भूख तो दूसरी तरफ कोरोना...। रमिया दो नन्हें बच्चों के साथ ऐसा साहस तो नहीं जुटा पाई, लेकिन अब इस भयानक परिस्थिति से कैसे निपटें, समझ नहीं आ रहा था। बेटी रानी तो मां का उदास,दुखी और बेबस चेहरा देख सहम कर रोते रोते थक कर सो गई थी। नन्हा राजू अब भी भूख से बिलबिला रहा था। रमिया का कलेजा मुंह को आ रहा था। सुना है सरकार कुछ मदद भेजने वाली है। पेट की आग को दबा कर राजू को गोद में लिए झोपड़ी से बाहर निकल कर इधर उधर आशा की नजर दौड़ाई, पर निराशा ही हाथ आई। दूर दूर तक आदमी न आदमज़ात..बस एक कुत्ता मुंह में रोटी दबाए पीछे की गली से भागकर आता दिखाई दिया। रमिया निराश होकर अंदर मुड़ी ही थी कि राजू की दिल दहला देने वाली चीख सुनाई दी...रमिया बिजली की गति से वापस दरवाजे की ओर भागी। कुत्ता ज्यादा दूर नहीं गया था, रमिया तेजी से कुत्ते पर झपटी, उसके मुंह में दबी रोटी अब रमिया के साथ में थी। लपक कर अंदर भागी, कटोरी में पानी में नमक मिला कर उसमें रोटी भिगो कर राजू को खिलाने लगी।
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लघुकथाकार - वंदना श्रीवास्तव 
पता - नवी मुंबई 
कवि का ईमेल - vandanapradeep05@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

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