Sunday 12 April 2020

रात भर / कवयित्री - पूनम (कतरियार)

कविता 





ओढ़ कोहरे की रजाई
ऊंघता रहा चांद रातभर
ठिठुरती रही हवाएं
अलाव के गिर्द रात-भर

दसों दिशाएं कांप रहीं थीं
हरखू के मचान पर
भूत बनकर खड़े फसल
डरा रहे थें रात-भर

ढिबरी की मद्धिम बत्ती में
नाल कटने की आस लिए
प्रसव वेदना में कातर बुधिया
छटपटाती रही रात-भर

कांपता परदेसी पथ पर
घर पहुंचने की साध लिए
खेत की पगडंडियों पर
भटकता रहा रात-भर

मोतियाबिंद से लाचार
घुटने के दर्द से बेजार मां
गर्म तेल की प्रतीक्षा में
सुबकती रही रात-भर

धीमे-धीमे सघन हो
कोहरा उतर आया भीतर
बूंदें बरसें, धुंध छंटे कुछ
सोचता रहा मन रात-भर.
.....
कवयित्री  -पूनम (कतरियार)
पता -पटना 
कवि का ईमेल - poonamkatriyar@yahoo.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल - editorbejodindia@gmail.com
    

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