कविता
समय यह
जरा कठिन सा है
अधिकतर चेहरों पर
उदासी की
लकीरें खीचीं हैं
चलता -फिरता जीवन
ठहर सा गया है
खुले हाथ
बंद मुठ्ठियों में
बदल गये हैं
धड़कते दिल और
कसमसाते पैर
घर में बंद पड़े हैं
जो जहां है
बस वहीं पर
ज़म सा गया है
सैकड़ों मील दूर से
उठ कर आया है
यह कोरोना का तूफान
जिसके ज़द में
फंसे हैं
क्या आम और
क्या खास
उपाय तो
ढ़ूढें नहीं मिल रहा
फिर सामने से लड़ कर
कैसे जीती जा सकती जंग
बचाव ही है
एक मात्र समाधान
बस सब छिप कर बैठें
जब शत्रु हो बलवान
बीत जायेगा यह समय भी
खुल जायेंगे रास्ते
तब तक
सुरक्षा के सब प्रहरी
जो अपनी नींद तोड़
अपना चैन छोड़
हमारा जीवन सुरक्षित बना रहे
करें हम
उनके ज़ज्बे को सलाम
इस कोरोना के समय में
छोड़ दे हम रोना
भरे स्वयं में आत्मविश्वास
इंसान और इंसानियत पर
करें हम सब भरोसा
सावधानी बरतें
और सावधान रहें
मन में रखें विश्वास
जीतेगे हम
हारेगा कोरोना
जरुर.....!
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कवयित्री - श्वेता शेखर
कवयित्री का ईमेल - shweta1429@gmail.com
प्र्तिक्रिया हेतु ब्लॉग के ईमेल - editorbejodindia@gmail.com

Very very nice poem
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