Monday, 20 July 2020

डर / कवयित्री - चंदना दत्त

कविता
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आज अहल सुबह नींद खुल गई।
बहुत साल बाद इस  साल वसन्त के महीने में निश्चिंत होकर सो पाती थी।
वरना सुबह के विद्यालय में कहां नींद पूरी कर पाती थी!
जब नींद खुल गई तो चली बगिया 
में फूल तोड़ने ।
अहा पुरवा बयार कितनी सुहानी लग रही थी।
चारों तरफ लाल ,पीला ,गुलाबी गुड़हल ,
कचनार, कनैल,आक, धतूरा,
बेला, कामिनी की मदिर सुवास  से मन प्रफुल्लित हो गया।
दरअसल माताजी को बड़ा शौक था बागबानी का ।
सुबह हो गई थी किन्तु चारों ओर 
मरघट सी वीरानी थी , कोरॉना के डर से लोग घरों में बंद थे 
अजब सी वीरानी थी ,वरना सुबह सुबह 
हलचल होती थी चारों ओर।
डाली भर गई थी फूलों से मगर 
मैं नहीं भरा था ,
दृष्टि गुलाब की तरफ गई तो लगा 
फूल आपस में बतिया रहे हों
गुलाब कचनार से कह रहा था 
ऐ सखि 
अपनी तो इतनी छोटी जिंदगी है 
पर हंसते ही रहते है 
और इंसान को देखो इतनी सी विपत्ति में  हल्कान हो गया।
....
कवयित्री - चंदना दत्त
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Friday, 5 June 2020

इशारों में इश्क कीजिए, आंखों से बात कीजिए / कवयित्री - पूनम कतारियार

गीत 

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इशारों में इश्क कीजिए, आंखों से बात कीजिए
कोरोना से बचना है तो, मैसेज से रोमांस कीजिए।

साबुन से हाथ धोइएं, सैनिटाइजर  गिफ्ट  कीजिए
मास्क लगाकर वो आयें तो दिल से पहचान लीजिए।

गाल हैं उनके गुलाबी, झुकीं-झुकीं-हैं निगाहें,
विडियो कॉल में देखिए शरमायी उनकी अदाएं। 

सजदे करें डाक्टरों के ,पुलिस को करें नमस्तें,
रहकर अपने घरों में कोरोना को भगायें हंस कें। 

हालात  सही  नहीं  हैं , सारा  जहां  हैं  व्याकुल
कोरोना को हरा लिया तो, होगा माहौल कूल-कूल। 
.....
कवयित्री - पूनम (कतरियार)
कवयित्री का ईमेल आईडी -poonamkatriar@yahoo.com 
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Thursday, 7 May 2020

दिल के टुकड़े दूर फँसे / कवि - प्रशान्त दास

कोरोना ग़ज़ल 

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बिन   बेचैनी   चैन  क्या
दुःस्वप्न बिन नैन क्या !

दिल के टुकड़े दूर फँसे
कारें क्या, अब ट्रेन क्या !

भूखे हैं, वो फिर  भी चुप
बंदूकें क्या,और केन क्या !

इंसानों से प्रेम  न  हो तो
क्या हिंदू, और जैन क्या !

सबको मारा बारी-बारी
दास, पीटर, हुसैन क्या !

गहरी जेबें, पर दिल छोटे
लेन  क्या,  तब  देन  क्या !

इंतज़ार  में  बीत  रहे  हैं
सांझ-भोर, दिन-रैन क्या !
........
कवि - प्रशान्त दास 
कवि का ईमेल आईडी - prashant.pkd@gmail.com
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Wednesday, 6 May 2020

कोरोना को भगाना है / कवयित्री - शिखा सुप्रिया

गीत 

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 कैसी है ये महामारी 
मौत के मुंह में दुनिया सारी
बहुत हो चुका मौत का तांडव 
अब तो इसे हराना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

अफवाहों से नहीं घबराना 
सुरक्षा क्रांति के दीये जलाना 
संघर्ष के मृदंग को बजाना 
 भारत को मुसकाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

शिकवों की जो थी बरसातें 
अपनों को वक़्त न देने की बातें 
आज यह अवसर मिला तो अब
हमको नहीं गंवाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

छूट गई जो व्यवहार-संस्कृति 
फिर से उसे अपनाना है 
हाथ जोड़कर अभिनन्दन करना 
इसे व्यवहार में लाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है 

लॉक डाउन का करें पालन 
घरों के अन्दर समाना है 
सरकार के अनुदेशों को सुनकर 
मानना और मनवाना है 
एक साथ मिलकर कोरोना को भगाना है.
.........

कवयित्री - शिखा सुप्रिया 
कवयत्री का ईमेल - shikhashankardas@gmail.com
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Friday, 1 May 2020

कोरोना महामारी / कवयित्री - विनीता मल्लिक

कविता 

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नहीं देखता वह धर्म
नहीं पूछता जाति
न रूके मेरी स्वीकृति को
न दे  हिदायत।

बिनु पदचाप का वह फैल रहा
है बना सम  का रथी
मनुजता का लाभ उठा
मनुज को ही बना सारथी।

अति सूक्ष्म होकर भी
विकराल असुर है वह
वसुधा कुटुम्ब को
काल गाल में धकेलता वह।

समाजिकता का शत्रु  बन
निर्दोष प्राण हर रहा
अपने से अपनों को
दूर किये जा रहा।

छीन रहा उनमुक्तता और
विश्वास जो मिलता नेह से
शीतलता के स्थान पर
भयावहता झलके मनुष्य  के देह से।

गाइड लाइन के अनुपालन  से
जीतेंगे हम यह झगड़ा
रख स्वयं  को स्वच्छ
जबाव देंगे हम तगडा।
......
कवयित्री - बिनीता मल्लिक
कवयित्री का ईमेल - binitamallik143@gmail.com
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Tuesday, 28 April 2020

जान की खातिर सब कुछ सहना अच्छा लगता है / डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव

गीत 

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चुप - चुप यूँ घर में ही रहना  अच्छा लगता है
जान की खातिर सब कुछ सहना अच्छा लगता है।

हैरत बस इस बात की पल- पल मुझे सताती है
 छींक जरा सी आ गई तो 'कोरोना' लगता है।

कितनी खुशियाँ ज़ल्वे थे जब बाहर जाते थे
 आज डरा दिल कुछ ऐसे, सब सपना लगता है।

जी ना लगता, कैसे कह दूँ, सब तो अपने हैं
 अपनों के संग वक्त बिताना अच्छा लगता है!

 पास नहीं आओ बस नज़रों से ही बात करो तुम जी,
 कुछ मुस्काके नज़रें झुकाना अच्छा लगता है।

कितनी कातिल, कितनी जालिम छुप- छुप घात करे
 घर में छुप कर इसे भगाना अच्छा लगता है।

ऐ 'अनु' डर भरे बेबस पल, शीघ्र ही बीतेंगे
 डर को भी हँस- हँस कर जीना अच्छा लगता है!
.........
कवयित्री - डॉ. अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
पता - पटना - बिहार
कवयित्री का ईमेल - annpurnashrivastava1@gmail.com
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Monday, 27 April 2020

मनु कहिन (25) - भूख हावी है कोरोना के ऊपर

कविता 

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कोरोनावायरस - जैसे ही नाम जेहन मे आता है, मन एक अज्ञात आशंका से सिहर उठता है!!
तभी, ध्यान आता है रिक्शा खिंचते हुए व्यक्ति का, उन मजदूरों का जो आज कोरोनावायरस की वजह से बेरोजगार हैं!!


भूख हावी है कोरोना के ऊपर!

कोरोना तो शायद प्रारब्ध है
पर, इस भूख का क्या करें!
रोज़ एक टीस सा दे जाता है
अहले सुबह बच्चों का भूख से बिलबिलाना !
देख अफसोस होता है अपने मनुष्य होने पर
क्यों जन्म हुआ चौरासी लाख योनियों मे भटकने के बाद!
अभी तो सिर्फ 'पॉज' बटन दबा है
आगे आगे देखिए होता है क्या!
बाजारवाद और वोटों की राजनीति है साहब!
आम आदमी उतना ही समझ पाता है जितना चैनल वाले समझा जाते हैं
जो स्थिति को समझता है 
वो डरकर एक अज्ञात आशंका से सिहर उठता है
और यह देख उसका ह्रदय रो उठता है
कि अब अनेक लोग  पेट दबा, 
बच्चों को एवं खुद को पानी पिला सो जाते हैं
अगली  सुबह के इंतजार मे
आइये हम उनकी इस आस को मिटने न दें उनकी मदद करके
और प्रशासन के तमाम निर्देशों का पालन करके
ताकि हम कोरोना को भी हरा पाएं
और हरा पाएं उससे भी बड़े दुश्मन भूख को.
.........


लेखक - मनीश वर्मा
लेखक का ईमेल - itomanish@gmail.com
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